अब इसका क्या करें (लघु कथा)
लघु कथा: अब इसका क्या करें
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लेखक: रवि प्रकाश, रामपुर
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मैंने 5 या 6 अक्टूबर को संपादक को एक लेख दिया, जिसमें गांधी जी के बारे में चर्चा थी। संपादक ने दफ्तर में अपनी कुर्सी पर आराम से पीछे की ओर गर्दन लटकाकर लेख पर एक नजर डाली और चौंक कर कहाः” अरे ! यह तो गांधीजी के बारे में है। अब तो 2 अक्टूबर बीत गई । अब इसका क्या काम ! अगले साल लेकर आना ।(समाप्त)