अब आ भी जाओ तुम अवतारी!
अब आ भी जाओ तुम अवतारी,
राह देख रहे हैं हम तुम्हारी,
सुनते हैं तुम, आते रहते हो,
भक्तों के कष्टों को हरते हो,
मैं भी तो हूं भक्त तुम्हारा,
आकर के कष्ट हरो हमारा।
सतयुग में तो सब ठीक रहा होगा,
धर्म-कर्म का खुब जोर रहा होगा,
सबमें मेल जोल रहा होगा,
किसी तरह का कोई शोर नहीं हुआ होगा,
फिर भी तुमने अवतार लिया था,
तब तुमने किसका उद्धार किया था।
त्रेता युग में भी तुम आए हो,
परशुराम और राम कहाए हो,
दोनों रुपों में तुमने संहार किया,
एक रुप में क्षत्रियों पर प्रहार किया,
दूजे में दानवी शक्तियां पर वार किया,
आज तो हर जगह पर इनका वास है,
अब तो आना और भी ज्यादा खास है,
क्यों हमसे प्रतिक्षा करवाते हो,
द्वापर युग में भी तुमने अवतार लिया,
कृष्ण रुप में, देवकी के गर्भ में परिवेश किया,
यशोदा के घर में तुम पधारे,
दो-दो मां-बाबा का प्यार पाएं,
छोटी सी उम्र में ही तुमने लीलाएं कर डाली,
पूतना से लेकर कंश तक मार डाले,
तुम इतने पर भी नहीं रुके,
हर बार में तुमने कुछ नये काम किये,
विवाह भी तुम्हारे सोलह हजार एक सौ आठ हुए,
धर्म स्थापना को तुमने स्वयं को समर्पित किया,
गीता का उपदेश भी तुमने ही दिया।
आज भी भागवत में तुम्हारे ही रुप को देखा जाता है,
यह मुक्ति पाने का ग्रंथ हर घर में पूजा जाता है,
हम अभी तक इसी से तो काम चलाते रहे,
इस प्रतिक्षा में तुम्हारी राह निहारते रहे,
पर तुम ना आए तो अब पुकार रहे हैं,
अब तो तुम्हारा आना बनता ही है,
जब धर्म-कर्म सब कुछ ठीक नहीं चल रहा,
हर कोई,हर किसी को नहीं बर्दाश्त कर रहा,
एक-दूसरे को लड़ाने में हैं लगे हुए,
अपने स्वार्थों के लिए, दूसरों का हक लुटते रहे हैं,
बस अपने में ही सीमटे हुए हैं,
हमें हमारी भूलों को सुलझाने को तुम ही आ जाते,
तो हम भी समझते कि तुम तारणहारी हो,
अगर हो तो ,आ जाओ,हे अवतारी अब तो आओ।।