अब आती नहीं चिड़िया!!!
अब चिड़िया आती नहीं मुंडेर पर!
फड़फड़ाते नहीं पंख,
सुबह को समेटकर-
अब गाती नहीं चिड़िया….
अब आती नहीं चिड़िया…
कौवे भी,
अतिथि का संदेश लेकर नहीं आते….
कहां चली गई विदेशी कोयल!
शायद!
इसीलिए बसंता बूढ़ा हो गया है!!
इसीलिए अब धीरे-धीरे आता है..
देर से…
कम समय के लिए…।
आम!
शायद इसीलिए अब
सालों भर मिलने लगे हैं…
हर जगह…
वक्त बे वक्त दिखने लगे हैं…
शायद कहीं मिल जाएँ……
मोर… पपीहा….. तोता….. कोयल…..!!!!