‘अबला नहीं मैं सबला हूंँ’
‘अबला नहीं मैं सबलाहूं’
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मैं इतिहास विजय कहानी हूं,
नहीं अबला मैं योद्धा मर्दानी हूं।
बीच सभा में तिरस्कारी हूं ,
जुए में भी बेची ,हारी हूं,
वस्त्र खींचे,बाल भी नोचे –
हर पल की मैं सवाली हूं।
तलवार हाथ खडग ज्वाली हूं
क्योंकि ……….
अब मैं दुर्गा चंडी काली हूं।
मैं इतिहास विजय कहानी हूं
नहीं अबला मैं योद्धा मर्दानी हूं।
मैं वन वन जीवन भटकी हूं
दुराचारी आंख में खटकी हूं,
मानमर्यादा सहेजती रही हूं,
दीर्घ अंर्तपीड़ा भी झेली हूं,
सब्र की अब पराकाष्ठा हूं,
तलवार हाथ खडग ज्वाली हूं
क्योंकि…….
अब मैं दुर्गा चंडी काली हूं।
पूछूं प्रश्न विधाता से मैं आज,
क्यों दबी है दुखियारी आवाज,
नारी नहीं भोग्या और न साज,
जग सुता बिन शोभाहीन ताज,
तलवार हाथ खडग ज्वाली हूं,
क्योंकि……..
मैं अब दुर्गा चंडी काली हूं।
मैं इतिहास विजय कहानी हूं,
नहीं अबला मैं योद्धामर्दानी हूं।
अपनों में रही मान एहसानों को
कौन अपना कैसे जानू बेगानों को
खोटी नियत दूषित आत्माओं को
संहारू सबक सिखाऊं शैतानों को
तलवार हाथ खडग ज्वाली हूं।
क्योंकि…….
मैं अब दुर्गा चंडी काली हूं।
मैं इतिहास विजय कहानी हूं ,
नहीं अबला मैं योद्धा मर्दानी हूं।
अब बिजली कड़के अंबर फूटे
पहाड़ टूटे या धरती खंड छूटे
जकड़ी बेड़ियां वो परिपाटी टूटे
विनाशी और अंध जंजीरे खूंटे
बदल भेष बन रक्त पिपासी हूं
तलवार हाथ खडग ज्वाली हूं
क्योंकि……
मैं अब दुर्गा चंडी काली हूं।
मैं इतिहास विजय कहानी हूं ,
नहीं अबला में योद्धा मर्दानी हूं।
शीला सिंह
बिलासपुर हिमाचल प्रदेश?