अबके सावन लौट आओ
सूरज भी आ जाता है
चांद भी आ जाता है लौटकर
फिर मिलने का वादा करके
तू ही क्यों नहीं आता है लौटकर
मिल रहे है बरसों के बिछड़े
अब तो सारे गिले शिकवे भूलकर
आ गया है सावन भी अब तो
काश तू भी आ जाए अब लौटकर
जा रहा ये बादल आज बारिश बनकर
धरती की आस में, आसमां को छोड़कर
बरसा रहा बारिश की बूंदें ऐसे
थक गया हो जैसे सावन का झूला झूलकर
लग रही मुझे तू बारिश और मैं आसमां
किससे मिलने चली गई मुझको भूलकर
भूल गई साथ बिताया वो वक्त भी क्या
और जो वादे किए थे सावन में झूला झूलकर
एक दिन लगाओगे मेहंदी मेरे नाम की
कहते थे तुम, सावन में हाथों में मेहंदी लगाकर
वादा किया था सावन की पहली बारिश में मिलोगे
क्यों आज खुद ही खो गए हो मुझको बुलाकर
है आज मेरे ये झूले भी खाली
क्या मिल रहा तुम्हें, इनको उदास कर
नई ताज़गी आएगी इनमें भी सनम
जो एकबार तू भी आ जाए लौटकर
है अस्तित्व बादल का केवल आसमां में
कर दो पूर्ण इस आसमां को तुम लौटकर
आदत पड़ गई है इस सावन को भी तुम्हारी
कहीं चला न जाए ये सावन भी अब रूठकर