अबके सावन में ये सजनी कछु जियरा ऐंसे डोलत है
अबके सावन में ये सजनी, कछु जियरा ऐंसे डोलत है
कछु खोवत हैं कछु पावत है, कभी सोवत है कभी जागत है
पावत है सावन के आनंद, खोवत है प्रीतम का संग
पिया गए परदेश सखि, मोहे उनकी याद सतावत है
बिजुरी चमकै बदरा गरजै, नींद मेरी उड़ जावत है
चैन नहीं दिन रैन सखि, ये सावन और रिझाबत है
अंधियारी ये नम रातों में, जब आंख मेरी लग जाबत है
पिया सपन में आते ही, नींद मेरी खुल जाबत है
दादुर मोर पपीहा सजनी, पिया की रट लगबावत है
अबके सावन में ये सजनी, कछु जियरा ऐंसे डोलत है
कछु खोवत है कछु पावत है न सोवत है न जागत है