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28 Mar 2021 · 1 min read

‘अबकी फीकी होली’

धरा, हवा व पेड़ बचेंगे,
मानव ज्ञान कमाल से|
पर्यावरण दुरुस्त रहेगा,
धुआँ-धूल-धमाल से|

अबकी बार रंग खेलने,
ना निकलो तुम होली में|
कोरोना की गहन मार है,
बैठे रहो तुम खोली में|

मयंक बिखरे सपने सारे,
खाली जेब महँगाई में|
उड़ा ऱंग फीकी हुई होली,
जलीं खुशियाँ वनराई में|

✍ के.आर. परमाल ‘मयंक’

Language: Hindi
2 Comments · 531 Views

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