*”अप्रैल फूल”*
“अप्रैल फूल से जुड़ी यादें”
संस्मरण – गद्य
“वो दही भल्ले”
अप्रैल फूल अर्थात – मूर्ख दिवस बिना सोचे समझे सामने वालो को बेवकूफ बनाने की रची गई साजिश या तरकीब है।कभी कभी न जाने क्यों शरारत सूझती है कि चलो किसी को अप्रैल फूल बनाया जाय ………?
लेकिन जो समझदार व्यक्ति होगा वो कभी बेवकूफ नही बनता है फिर भी कभी अक्लमंद लोग भी इस अप्रैल फूल याने किसी न किसी बहाने से बेवकूफ बन ही जाते हैं।
वैसे तो कोई भी शरारत अदृश्य ही होती है ताकि लोगों को पता भी नहीं चले और किसी को मूर्ख बना दिया जाय, वैसे तो सभी एक दूसरे को किसी न किसी बहाने से कमजोर व्यक्ति को मूर्ख बनाते ही रहते है लेकिन एक अप्रैल को कुछ खास तौर से “मूर्ख दिवस” याने अप्रैल फूल बनाने के लिए दस्तूर बना दिया गया है।
कुछ ऐसी ही छोटी सी याद आपके समक्ष प्रस्तुत कर रही हूं।
वो दही भल्ले (दही बड़े)
मेरी सहेली को दही बड़े (भल्ले) बहुत ही पसंद है और मेरे हाथों से बना हुआ उसे बहुत ही अच्छा लगता है होली के समय हमारे यहां दही भल्ले तो बनते ही है क्योंकि तेल वाली चीजों को खाकर मन भर जाता है तो कुछ खट्टा मीठा जायकेदार भुना हुआ जीरा इमली की चटनी ,बारीक सेव नमकीन ऊपर से धनिया पत्ती पुदीना पत्ती से सजा हुआ, जब मीठी चटनी हरी चटनी ,दही डालकर खाओ बहुत ही स्वादिष्ट लगता है और मुँह में पानी भी आ जाता है।
मेरी सहेली हमेशा ही एक अप्रैल के दिन मुझे कुछ न कुछ तरीकों से “अप्रैल फूल” बनाती रहती है तो मैने सोचा मैं भी किसी तरह बहाने से अपनी सहेली प्रिया को अप्रैल फूल बनाती हूँ मैने योजना बनाई।
एक बड़े (बाउल )कटोरी में कागज से पर्ची पर बड़े अक्षरों में अप्रैल फूल लिख दिया और स्माइली हंसता हुआ चेहरा बनाकर उस कटोरी में कुछ रंगीन पत्थर रख दिया था ताकि कुछ वजन भी लगे खाली कटोरी से जल्दी समझ आ जायेगा और ऊपर एक प्लेट से ढक दिया था।
सहेली के घर दही भल्ले लेकर गई पहले तो मन में यह भी लग रहा था मैं जो मजाक कर रही हूँ वो सही नही है फिर भी ये तो सिर्फ कुछ देर के लिए हंसी मजाक उड़ाने हंसने हंसाने हंसने के लिए जिससे हम कुछ पलों के लिए हंसकर आनंद लें।
जब सहेली के घर गई तो वह घर के कामों में व्यस्त थी पूछा क्या लाई हो….. मैंने कहा -“तुम्हारी मनपसंद चीज दही भल्ले तो कहने लगी अरे वाह मुझे तुम्हारे हाथ के बने दही भल्ले बेहद पसंद है।” अभी कुछ कामों में व्यस्त हूँ कहने लगी किचन में ले जाकर रख दो जब काम से निपटने के बाद खाना खाते समय आराम से बैठकर खाऊँगी।
मैं भी मंद मंद मुस्कराते हुए किचन में कटोरी रख कर आ गई थी लेकिन घर में आने के बाद सोचने लगी पता नही उसे बुरा लगा होगा।जब कटोरी खोल कर देखेगी तो मेरे बारे में क्या सोच रही होगी। शायद ऐसा मुझे नही करना चाहिए …..? ?
कुछ देर बाद असली दही भल्ले लेकर गई तो मेरी सहेली दरवाजे पर ही देख बड़े जोर से हंसी और कहने लगी दही भल्ले तो सचमुच बड़े स्वादिष्ट बने थे ……..
मैंने भी दही भल्ले की असली प्लेट हाथों में थमाकर कहा लो अब असली दही भल्ले खाओ उसने कहा चलो अब दोनों मिलकर साथ में ही दही भल्ले खाते हैं उसके बाद पुरानी भूली बिसरी यादों का पिटारा लेकर एक दूसरे की शरारत पर खूब ठहाके लगाए और पुरानी बीती यादों के साथ अप्रैल फूल बनाया उन पुरानी यादों को तरोताज़ा करते हुए दही भल्ले खाने का मजा लिया ।
दही भल्ले खाते हुए दोनों सहेली गाने लगी…..
“अप्रैल फूल बनाया तो उनको गुस्सा आया तेरा मेरा क्या कसूर जमाने का कसूर जिसने दस्तूर बनाया”
जय श्री कृष्णा राधे राधे ?
शशिकला व्यास✍