**अपेक्षा ही उपेक्षा का मूल कारण है *
“अपेक्षा ही उपेक्षा का मूल कारण है”
हम सामाजिक परिवेश में रहते हुए पारिवारिक सदस्यों के बीच अनेक रिश्तेदारी में बंधे ही रहते हैं और कुछ न कुछ कारणों से परेशान से डरे सहमे हुए भी रहते हैं इसका मूल कारण उपेक्षा ही है बच्चों के परवरिश में उनके भविष्य की योजनायें बनाना ये हमारा कर्तब्य है लेकिन इसे नजरअंदाज नही किया जा सकता है उसी प्रकार भाई ,बहनों या अन्य सगे संबंधियों ,पड़ोसियों के साथ भी कुछ न कुछ अपेक्षाएं रहती ही है भले ही हम यह सोचते हैं कि ऐसा नहीं है लेकिन ये भेदभाव जागृत हो जाते हैं वैसे तो ईश्वर से भी अपेक्षा रखते हैं अपने ही बच्चों को भविष्य में उच्च पदों पर कार्य करने या पढ़ाने के बाद ये सोच लेना कि आने वाले दिनों में वह कुछ उससे ज्यादा लौटा देगा ये मुश्किल है कह नही सकते अगर उन्हें यह कहा भी जाये तो उन उपेक्षा से कोई फायदा नही बल्कि नुकसान ही पहुँचेगा चिंता व अवसाद की स्थिति पैदा हो जायेगी
इसलिए ये भूल जाओ कि हमें कुछ वापस मिलेगा। कर्म बंधन में बंधकर नि स्वार्थ सेवा करना ही मूल धर्म है बाकी बदले की चाहत रखना ही उपेक्षा (दुःख ) का कारण बन जाती है।
किसी भी व्यक्ति की जी जान से सेवा करते हैं और वह बदले में भला बुरा कहता भी है तो उसे सहने की शक्ति लानी होगी क्योंकि उस समय मन तो दुःखी होता है पीड़ा दूर करने के लिए रिश्तों को महज स्वीकार करते समझते हुए पारिवारिक वातावरण को शांति प्रदान कर सकते हैं वरना उपेक्षाओं के मूल कारणों से तो विनाश ही दिखाई देगा और कुछ भी नही हो सकता है।
आधात्मिक ज्ञान से अपने को आत्मसात कर जीवन को मजबूती से पकड़ बनाई रखनी पड़ेगी ताकि खुद को बुलंद कर जो हम लोगों को देना चाहते हैं उसे स्वाभाविक रूप से आत्मसात कर लें कर्म बंधन में सहर्ष स्वीकार करते हुए पारिवारिक माहौल को सुदृढ़ बनाये रखा जा सकता है।
*अपेक्षा से अधिक उपेक्षाओं से दूर रहें ताकि जीवन में आने वाली बाधाओं समस्याओं से जूझने की ताकत मजबूती से पकड़ बनाये रखें
** शशिकला व्यास ??**
#* भोपाल मध्यप्रदेश *#