अपेक्षायें
भाईयों-बहिनों
को चाहिए,
भाई ज़िम्म़ेवार।
माता-पिता
को पुत्र पूरा।
समाज को
इंसान जो जिए
दूसरों के लिए ।
देश को चाहिए
सच्चा देशभक्त ।
मित्रों को चाहिए
मित्रता अनपेक्षित
सहयोग सहित ।
कला को
समर्पण ।
सभी को
आधा-अधूरा नहीं,
पूरा का पूरा चाहिए।
सभी को चाहिए,
अलग-अलग
समझौते अपने
ही अनुसार ।
केवल एक अकेले
ही आदमी से ।
सोचो !
कितने रूपों में बटकर ।
कितने भागों में कटकर ।
कितनी बार पिसकर ।
कहाँ-कहाँ से घिसकर ।
पुनर्जीवित-सी हो-हो कर,
खड़ी हो जाती है प्रतिभा ।
लेकिन- ज़रा
विचार करो कि-
जो प्रतिभाहीन हैं,
उनके खड़े न होने में
उपर्युक्त बातें
कितनी सहायक हैं. ?