अपलक टेर
अपलक टेर (लघुकथा )
सखी सुरूचि , तुम्हारा यूँ अपलक निहारना और पुकारे जाने पर अनसुनी करना । इस बात का प्रमाण है कि तुम किसी की याद में खोयी हुई हो पर सखी किसकी ? बताओ तो सही , सखी वो कोन है ?
सुरूचि , “सखी सुनीति ! हृदय जिसके लिए व्याकुल है जिसके लिए अपलक टेर रहा है वो प्रिय के अतिरिक्त कोन हो सकता है । विगत दिवस उनका गैल में मिलना और आलिंगनबद्ध करना याद आता है ।
उस संस्पर्श की जीवंतता अब भी स्मृतियों में सहेजे हूँ “पर जीवन में किसी प्रियजन को त्याज्य पर पुरूष से विवाह असंख्य बैचेनियां उत्पन्न करता है इसलिये सखी “अपने में खोयी हूँ अपलक निहार रहीं हूँ ।”
सखी सुरूचि ,”चिंता और भावी डर की आशंकाओं ने तुमको दुखी कर दिया है चाहो तो प्रिय को प्रेम पांति लिख अपनी आशंकाओं को शांत करो और प्रिय से प्रणय को निभाओ ।
सखी अचला,”प्रियवर के नाम लिखी पांति प्रिय को पहुँचा कर मुझे कृतार्थ करो और कहना सखि सुरूचि आपकी बाट देखती है “. !