अपराध बोध
“आर्दश वृद्धाश्रम” हाँ यहीं नाम था।
वृद्धा ने चश्मा लगा कर बड़े ध्यान से पढ़ा।
ठीक पैंतीस साल पहले पति एवं सास के साथ यहाँ आई थी।उन्होंने अपनी सास को
यहीं तो रखा था।पलट कर फिर कभी उन्हें
देखने भी नहीं आई थीं।आज बेटा-बहु के साथ उन्हें भी यहीं लाया गया था।इतिहास दोहराया जा रहा था।डबडबायी आँखों से अपराध बोध के साथ खामोशी से वह आश्रम
में दाखिल हो गईं।