अपराध बोध
तू दर्द समेटे रहती हैं,
तू मुझसे सब कुछ कहती हैं।
तू मुझको अपना सखा कहे,
तू खुद को मेरी सखी कहे।।
तू भोली भाली प्यारी सी,
तू सबसे प्यारी न्यारी सी।
तू फूलो की एक क्यारी सी,
तू दर्द छुपाए हारी सी।।
तू अपराध बोध मे रहती हैं,
तू डर डर के क्यो कहती हैं?
तू कहना जो भी कहना हैं,
अपराध बोध ना रहना हैं।।
मैं तेरा हूँ बस तेरा हूँ,
धूप सुनहेरी और सवेरा हूँ।
मैं तेरे बिन तो अधूरा हूँ,
बिन प्रेम कहा मैं पूरा हूँ।।
तुम इतनी जल्दी रूठ गए,
तुम बिन माने ही टूट गए।
तुम हँसने से मेरे रूठ गए,
तुम दूर मुझे करदोगे क्या?
जब मुझे जरूरत तेरी हैं,
तू दूर अभी से हो री हैं।
मैं कही नही हूँ व्यस्त सुनो,
तू ऐसी क्यो अब हो री हैं?
ललकार भारद्वाज