अपराजिता
अपराजिता
वह शाम से गुमसुम बैठी है। जब भी थिरापिसट से लौटती है, ऐसा ही होता है, लगता है सब ख़ाली हो गया है, जो रह गया है, वह है एक टीस । उसकी मित्र ने कहा था,थैरपिस्ट अच्छा है या बुरा, उसकी पहचान इससे होती है कि , हर बार आपको अपने बारे में कुछ नया समझ आये, और ऐसा ही हो रह था, और आज उसने बताया था कि वह अपनी माँ से बहुत नाराज़ है, उसने जो खुद पाया, अपराजिता को नहीं मिला, माँ ने वह राह उसे दिखाई ही नहीं , और पापा भी माँ के साथ सहमत थे ।
पापा बंबई में एक अच्छी नौकरी पर थे, चाचाजी पढ़ने में ज़्यादा अच्छे नहीं थे, इसलिए पीछे सोनीपत में दादाजी की दुकान सँभालते थे, एक घरेलू लड़की से उनकी शादी हो गई थी , और देखते ही देखते उनके तीन बच्चे हो गए थे, पापा उनका जब मौक़ा मिलता मज़ाक़ उड़ा देते, और घर के बाक़ी लोग भी हंस देते, आख़िर पापा इंजीनियर प्लस एम बी ए थे। माँ भी इंगलिश में एम ए , एक बढ़े घर की बेटी थी ।
अपराजिता के जन्म पर ही पापा ने घोषणा कर दी, बस, अब और बच्चे नहीं, इसको मैं अच्छी से अच्छी परवरिश दूँगा ।
माँ को तो वैसे ही नौकरी का शौक़ नहीं था, अप्पी आ गई तो , बस वह उसके साथ व्यस्त हो गईं । उसको बहुत महँगे स्कूल में डाला गया, डांस, म्यूज़िक, स्पोर्ट्स , हर दरवाज़ा उसके लिए खोला गया । बिना माँ बाप के कहे अप्पी समझ गई, उसके माँ बाप उससे क्या चाहते हैं । वह मेहनत करती रही, परन्तु एक मानसिक दबाव उस पर हमेशा बना रहता , विशेषकर जब वे सोनीपत जाते तो उसके माँ बाप को सबके सामने अपराजिता की उपलब्धियों के गुण गाने होते , और अपराजिता एकदम सकुचा उठती, और उसे लगता पापा का यह व्यवहार उसे परिवार के बाक़ी बच्चों से दूर कर रहा है ।
अपराजिता को आय आय टी में एडमिशन मिला तो माँ पापा गर्व से फूले नहीं समाये , सोनीपत फ़ोन किया गया, माँ ने उसे जीवन में कुछ कर गुजरने के लिए हमेशा से बड़ा भाषण दे डाला, उन्होंने फ़ोन पर अपने भाई से कहा, “ मेरी सारी मेहनत, सारा त्याग सफल हो गया। “
अपराजिता सोच रही थी, इतनी आराम की ज़िंदगी में त्याग कहाँ है !
इंजीनियरिंग के बाद वह अमेरिका आ गई । पापा फिर सोनीपत फ़ोन करके कह रहे थे “ सी एम यू में एडमिशन मिलने का मतलब समझती हो माँ , और वो भी स्कालरशिप के साथ, हमारे परिवार का पहला बच्चा विदेश में शिक्षा पायगा, जो मैं नहीं कर पाया, मेरी बेटी ने कर दिखाया । “
अपराजिता ने मास्टर्स की, नौकरी मिली, और साथ में सी एफ ए करने के लिए सपांसरशिप भी । इस बीच चाचा जी की दो लड़कियों की शादी हो गई थी, और अचानक माँ को उसकी शादी की फ़िक्र घेरने लगी थी । अब वह जब भी फ़ोन करती, इसी बारे में बात करती, मां रातों को ठीक से सो नहीं पा रहीं थी । जिस दिन चाचाजी का नाती हुआ, उस दिन बात करते हुए उनका गला रूँधने लगा, अप्पी की सारी सफलता उन्हें अर्थहीन लग रही थी , अब अचानक चाचा जी के पास सब था , और इनके पास कुछ भी नहीं, ईश्वर के इस अन्याय को समझना माँ के बस की बात नहीं थी ।
इन सब में पापा चुप थे , “ ज़माना बदल रहा है, सिर्फ़ घर बसा लेने से कोई खुश नहीं हो जाता, जीवन में और भी बहुत कुछ चाहिए ।” यह उनका तर्क था ।
और यह और सब क्या है, इसका उत्तर उनके पास नहीं था, पर उन्हें विश्वास था, अप्पी को जल्दी ही अपनी पसंद का लड़का मिल जायेगा ।
अप्पी अब मैनेजर बन चुकी थी, दुनिया भर की यात्रायें कर चुकी थी, उसके पास इतने पैसे थे कि , उसने माँ पापा को मुंबई में बड़ा सा घर ख़रीद दिया था। उसकी अमेरिकन सहेली ने उसे समझा दिया था, कि आजकल किसी भी वजह से शादी करना ज़रूरी नहीं है । तीस की उम्र विशेष नहीं होती, उसे अपने अंडे फ़्रीज़ कर देने चाहिए, यदि कोई शादी के लिए नहीं मिला तो स्पर्म ख़रीदे भी जा सकते हैं , यह तकनीक का युग है, मनुष्य की ताक़त बढ़ रही है, पुराने पारिवारिक ढाँचे को गिरना ही होगा ।
अपराजिता को उसकी बात समझ आ रही थी, वह मानती थी कि मनुष्य की सारी समस्याओं का समाधान तकनीक निकाल लेगी , मनुष्य का सुख स्वतंत्रता में है , और तकनीक मनुष्य को आत्मनिर्भर बनायेंगी ।
नया वर्ष आते न आते कोविड आ गया, अब वह घर से काम करने लगी, कुछ ही दिनों में उसका वजन बढ़ने लगा , जब काँटे ने वजन पूरा सौ किलो दिखाया तो उसके आंसू निकल आए, वो घंटों दहाड़े मार कर रोती रही, वह नहीं जानती थी यह कौन सा बांध था जो टूट गया था।
अब सिलसिला शुरू हुआ खाने को निकालने का, वह अकेलेपन को भरने के लिए दुनिया भर का कचरा खाती और फिर रात को लैक्ज्टिवज लेकर, रात भर शौचालय आती जाती रहती, नींद कम आने से दिन भर थकी थकी रहती । वह घर जाना चाहती थी, उसने माँ से कहा, “ मुझे शादी करनी है, लड़के देखो । “ माँ यह सुनकर और अधिक व्यस्त हो उठीं ।
अमेरिका और भारत के हवाई रास्ते खुल गए थे , चाचा के बेटे की शादी थी, माँ ने ज़ोर दिया कि वह भी आए ताकि लोग उसे देख लें , और लड़का ढूँढने में आसानी हो ।
जाने से पहले लैक्जेटिव लेकर उसने अपना वजन और घटा लिया । शादी में उसे देखकर सब ख़ुश थे , पर जैसे सब उसके लिए चिंतत थे, सभी की नज़रें उस व्यक्ति विशेष को ढूँढ रही थी, जो उससे विवाह करेगा, इस तरह घेरे में ला खड़ा करने के लिए उसे माँ पर बहुत ग़ुस्सा आ रहा था ।
लड़का तो नहीं मिला था , पर उसे यह समझ आ गया था कि सारी चिड़चिड़ के बावजूद वह इतने सारे लोगों के बीच खुश थी, वह खाना ठीक से खा रही थी और उसे लैक्जेटिव लेने की ज़रूरत नहीं पड़ी थी । वह समझ गई थी कि वह ईटिंग डिसआर्डर की शिकार थी, इसलिए अमेरिका वापिस आते ही उसने थिरापिसट से एपाएंटमैंट ले ली थी । चार महीने लगातार बातें करने के बाद अब उसे लग रहा था , कि अब संभवतः उसके लिए बताने के लिए कुछ नहीं है । अब उसे अपना दृष्टिकोण खुद चुनना है। वह काम करेगी तो अपनी ख़ुशी के लिए, किसी को पीछे छोड़ने के लिए नहीं , वह विवाह उससे करेगी, जो उसे वो जैसी है, उसे स्वीकार करे, उसे समय दे , उसकी तनख़्वाह अपराजिता से कम भी होगी , तो चलेगा , इससे अधिक उसे कुछ नहीं चाहिए । ईश्वर की यह दुनियाँ खूबसूरत है, वह चाँद तारों के लिए समय निकालेगी ।
सुबह उठी तो उसके चेहरे पर मुस्कुराहट थी, और वह जान गई थी , जीवन को एक अनुभव की तरह जीने से अनमोल कुछ भी नहीं ।
——-शशि महाजन