अपमान
चुप हैं सब स्त्रियां एक स्त्री के
अपमान पर,
खुद के साथ बीती होती तभी
बोलतीं अपने मान पर।
कलम लिखती है नारी की दर्द
नारी के,
जुबां साथ देती नहीं उनकी
उसी के सम्मान पर।
वो बोलें क्यों किस ओर की
खातिर,
ये बात उनकी नहीं तभी ताले
पड़े जुबान पर।
उनको तो मतबल है सिर्फ ही
अपने सलीके से,
फ़र्क़ पड़ता नहीं उनको किसी
की दास्तान पर।
तमाशा बनते देखती है औरत
ही दूसरी ओरत का,
बिडम्बना कैसी न जाने दोस्तों
इस जहान पर।
समानता बातें लिखती हैं तो
क्यों भूल जाती हैं,
गाली अगर पुरुष देगा तो आंच
आएगी उसकी शान पर।
गाली खाओ पहले फिर तुम
एहसास करो,
क्या बीतती है किसी के आत्म
सम्मान पर।
सीमा शर्मा