” अपन महिस के कुरहैरे ल के नाथब “
डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ”
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हम कखनो -कखनो किनको तर्क सं तिलमिला जाइत छी ,अचंभित भ जाइत ! कखनो माथ कुड़ीयबैत इ अन्वेषण करS लगैत छी कि एहन दिव्य व्यक्तिक प्रकाश मलिन किया भ गेलनि ? हुनका बुझने त ओ ज्ञानक आलोक पासारि रहल छथि ! किछु प्रेमी लोकनि हुनके तबलाक थाप पर मंत्रमुग्ध भेल आंखि बंद केने अप्पन गरदनि हिलेनाइ प्रारंभ कS देत छथि ! परंच जिनका ताल- मात्र ,लय आ संगीतक कनिकबो ज्ञान रहित छैन्हि ओ एकाग्रचित भS सुनैत छथि ! कनिकबो जे सुर सं विचलित भेलहुँ त इंगित केनाय सं परहेज नहि करताह ! ओना सब प्राणीक विचारधारा एक सन नहि भ सकैत अछि ! हम जाहि परिवेश छी , जेना हम सबगोटे रहैत छी ,हमर जे कार्यशैली अछि ओ सब हमर लिखब ,बाजव आ अभिव्यक्ति मे परिलक्षित हैत ! कियो कहैत छथि “बच्चा लोकनि पैघ -पैघ स्कूल मे अंग्रेजी आ हिंदी माध्यम मे शिक्षा ग्रहण करैत छथि ! हुनका लोकनि कें ओहि भाषा मे निपुण केनाय अतिआवश्यक ! मैथिली भाषा त ओहिना ओ सब सीख जेताह तें हमरा लोकनि कें अपना बच्चा सब सं अंग्रेजी आ हिंदीये मे बातचीत करक चाहि ! मैथिली त अप्पन भाषा अछि ताहि लेल चिंता जुनि करू ओ कखनो सीख लेत !” एहि रूपक विचारधारा प्रगट केनाय कोनो अपराध नहि थीक ! विचारक अभिव्यक्तिक अधिकार सबकें भेटल छैक ! आब निर्णय हमरा लोकनि कें करबाक अछि जे इ राग ‘ महेशवाणी ‘ भेल कि ‘नचारी ‘ ! बच्चाक प्रतिभाक रूपक संरचना हम कोनो भाषाक माध्यमे कोनो आकृति प्रदान क सकैत छी इ सत्य थीक ! परंच आन भाषा मे अपना घर मे पढाबि इ हम यथोचित कथमपि नहि बुझब कियाकत ओ मैथिली भाषाक मोह आ बजनाइ सं कतो बंचित नS भ जाथि ! एतबे नहि गाम घरक परिवेश मे ओ अपना कें अनभूआर भ जेबाक शंका रहतनि ! बंगाली ,उडिया ,पंजाबी ,गुजरती ,मराठी ,मलयाली इत्यादि लोकनि घर मे अपन भाषा मे गप्प करैत छथि आ ओहि भाषा माध्यमे अंग्रेजी आ हिंदीक ज्ञान देत छथि ! मिथिलाक माटि-पानि सं यदि बच्चा कें आकर्षित करबाक अछि त अपन तर्कक संगे न्याय करय पडत अन्यथा अपन महिस अछि कुरहैरे ल के नाथब ” त कोनो हर्ज नहि !
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डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ”
साउंड हेल्थ क्लिनिक
डॉक्टर’स लेन
दुमका
झारखंड
भारत