– अपनो का दर्द सहते सहनशील हो गए हम –
– अपनो का दर्द सहते सहनशील हो गए हम –
वेदना दुःख, अपमान अपनो द्वारा,
मिल रही चोट स्वाभिमान को हर बार,
परिवार में रहने की यह सजा क्यों काट रहे हम हर बार,
व्यर्थ का झंझट व्यर्थ का विवाद,
पारिवारिक मर्यादा खंडित क्यों हो जाए बाहर अबकी बार,
संस्कृति को ठेस ना पहुंचे,
ना पहुंचे पूर्वजों के सम्मान को आघात ,
इसलिए सह रहे हम अपने अपनो के शब्दो का आघात,
अब अपनो का दर्द सहते -सहते सहनशील हो गए है हम,
✍️ भरत गहलोत
जालोर राजस्थान
संपर्क-7742016184