अपनों के लिए,मर-मर के जी जाएंगे![घरेलू हिंसा पर विचारने हेतु]
जीवन के इस सफर में,अब तक मैंने काम किया!
याद नही है मुझ को,इससे पहले कभी आराम मिला!
जीवन ऐसा ढल गया है अपना !
घर पर बैठ कर समय कट नहीं रहा है अपना!
मैंने कब सोचा था, मुझे ऐसे कभी मिलेगा विश्राम !
अब पडा हूँ घर पर, क्या करूँ? क्या करूँ मैं काम !
घर पर बैठ कर रहा नही जाता,कैसे मैं बाहर जाऊँ !
डर लगता है कि मैं अपनी आजादी,पाने को बाहर जाऊँ!
तो साथ में अपने साथ,इस बिमारी को लेकर लौट ना आऊँ?
घर पर ही बैठकर जो समय हैं बिताते,उन तक मैं इसको पहुंचाऊँ!
इस लिए घर पर बैठ कर,बौखलाया रहता हूँ!
अपने परिजनों को बात-बेबात पर डाँटता रहता हूँ!
ऐसे में घर वालों से होती रहती है अनबन !
उन्हें मै और मुझे वह लगते रहते हैं दुश्मन!
मेरा घर पर रहना,उन्हें नहीं सुहाता है!
घर पर बैठ कर रहना मेरा,उन्हें सताता है!
लेकिन घर पर बैठ कर रहना,मेरी मजबूरी है!
क्योंकि इस महामारी से,बच कर रहना सबको जरूरी है!
इस प्रकार मैं जैसे-तैसे,निभा रहा हूँ!
भले ही अपने घर वालों को सता रहा हूँ! चाहे मै उन्हें कतई नहीं भा रहा हूँ!
और अब तो वह मुझसे ज्यादा,इस कोरोना को कोष रहे हैं!
अनबन मुझसे होती है,और दोष कोरोना को दे रहे हैं !
मै भी अनमने मन से संतोष कर जाता हूँ!
जब अपनी जगह ,कोरोना को दोषी पाता हूँ!
इस तरह अपनी दिनचर्या निकल रही है भाई!
प्रतिक्छा कर रहे हैं कब यह महामारी जाए भाई!
बस धैर्य धारण करते जाएंगे !
तालाबंदी तोड कर क्या लाभ पाएँगे !
जीवन बना रहेगा तो फिर लौटकर अपने कार्य पर जाएंगे !
इसके लौटने तक थोड़ा बहुत कष्ट उठाएँगे !
और एक बार नहीं अनेकों बार , अपनों के लिए मर-मर कर भी जी जाएंगे!!