“अपनों की अपनों से जुदाई”
जमाने भर की खुदाई, मैंने हर पहर में देखा है।
अपनों की अपनों से जुदाई ,अपने ही घर में देखा है।
देखा है उजड़ते हुए,शहरों को कुछ मिनटों में।
वक्त को बदलते हुए ,देखा है कुछ घंटो में।
शक के जहर में जलते हुऐ, हर एक शक्स को देखा है।
अपनों की अपनों से जुदाई ,अपने ही घर में देखा है।
देखा है एक पल में ,लोगो को बदलते हुए।
अपनों को अपनों से, जलते हुए।
सिचते है जो मां- बाप अपने खून पसीने से ,उन्ही को निकलते अपने ही घर से देखा है।
अपनों की अपनों से जुदाई ,अपने ही घर में देखा है।
मुंह में मिठास और हाथों में ,खंजर रखते हैं।
अक्सर लोग यहां ,अपना बना के ही तो डसाते है
खुशियों को बदलते, हमने गम में देखा है
अपनों की अपनों से जुदाई ,अपने ही घर में देखा है।