अपने ग़मों को सी लें
अपने ग़मों को सी लें
अपने ग़मों को सी लें, अपने गमो को पी लें
अपनी खुशियों , अपनी आरज़ू को आबाद करें फिर से
क्यूं न कर अपने जीने के ज़ज्बे को बरकरार रखें
अपने दामन को खुशियों से आबाद करें फिर से
क्यूं कर कहे कोई , हमें अपना मुजरिम
किसी की अँधेरी रातों में उजाला करें फिर से
ख़्वाब हैं कि बिखरते है कभी संवरते हैं
अपनी कोशिशों का समंदर रोशन करें फिर से
क्यूं कर किसी को गिरता हुआ देखे कोई
किसी की मरमरी बाहों को सहारा दें फिर से
आंसुओं का कतरा – कतरा सिसकती जिन्दगी क्यूं हो
किसी के लबों पर मुस्कान बिखेरें फिर से
अजनबी – अजनबी सा समझ घूरती आँखें
रिश्तों में अपनापन का ज़ज्बा जगाएं फिर से
किसी के दामन में दाग लगे तो क्यूं कर लगे
कोशिशों का एक कारवाँ सजाएं फिर से