अपने हैं उदास
??कविता??
आसमान को रोते हुये देखा हैं,|
धरती को सोते हुये देखा हैं,||
सूरज को अपनी आग में जलते हुये देखा हैं,|
आखिर बदल गया हैं, कितना इंशान,|
मैंने पर्वतों को भी रोते हुये देखा हैं,|
धरती की रौंनक को खोते हुये देखा हैं,|
अब तो बरस जा ऐ मेघा ,|
धरती की हरयाली को मैंने सोते हुये देखा हैं,|
आसमान को रोते हुये देखा हैं,|
धरती को सोते हुये देखा हैं ,||
फूल की खुशबू को खोते हुये देखा हैं,|
अब कितना स्वार्थी हो गया हैं इंशान ,|
मैंने फूल को भी मरोड़ते हुये देखा हैं,|
झुकता नहीं हैं इंशान अपनी गलती पर,|
इसलिए आज भी अपनों को खोते हुये देखा हैं,|
चाँद को चाँदनी देते हुये देखा हैं,|
आसमान को रोते हुये देखा हैं,|
धरती को सोते हुये देखा हैं ,||
सूरज को रोशनीं बिखैरतें हुये देखा हैं,|
इतना मत बदल ये इंशान ,|
कभी-कभी अपनों को भी रोते हुये देखा हैं,|
आसमान को रोते हुये देखा हैं,|
धरती को सोते हुये देखा हैं ,||
बिखर रहा हैं, प्यार अपार,|
इस स्वार्थ वस ये इंशान ,|
मैंने धरती को भी बज़र होते हुये देखा हैं,|
निकल न जाये कोई अनमोल अपने आप से,|
मैंने उनको भी अकेले में रोते हुये देखा हैं,|
आसमान को रोते हुये देखा हैं ,|
धरती को सोते हुये देखा हैं ,||
टूट जाते हैं विशाल पर्वत अपने स्थान से,|
उनको भी अपनी आवाज में रोते हुये देखा हैं,|
प्यार बिखर रहा हैं हमारा इस धरती से,|
इसलिए अपनों को आज भी रोते हुये देखा हैं,|
आसमान को रोते हुये देखा हैं,|
धरती को सोते हुये देखा हैं ,||
हम टूट जाते हैं अपनों की जिद के आँगे ,|
क्या किसी ने भी हमें रोते हुये देखा हैं,|
बिछड़ रहा हैं प्यार और कर्म हमारा,|
हमनें अपने आप को रोते हुये देखा हैं,|
आसमान को रोते हुये देखा हैं,|
धरती को सोते हुये देखा हैं ,||
टूट गया हैं आज सब कुछ हमारा,|
हमनें आज भी रात सोते हुये देखा देखा,|
वक्त लाता हैं इंशान जिसमें अपनों को भी खोते हुये देखा हैं,|
आसमान को रोते हुये देखा हैं,|
धरती को भी सोते हुये देखा हैं,||
लेखक – Jayvind singh