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3 Jan 2020 · 2 min read

अपने हैं उदास

??कविता??

आसमान को रोते हुये देखा हैं,|
धरती को सोते हुये देखा हैं,||

सूरज को अपनी आग में जलते हुये देखा हैं,|
आखिर बदल गया हैं, कितना इंशान,|
मैंने पर्वतों को भी रोते हुये देखा हैं,|

धरती की रौंनक को खोते हुये देखा हैं,|
अब तो बरस जा ऐ मेघा ,|
धरती की हरयाली को मैंने सोते हुये देखा हैं,|

आसमान को रोते हुये देखा हैं,|
धरती को सोते हुये देखा हैं ,||

फूल की खुशबू को खोते हुये देखा हैं,|
अब कितना स्वार्थी हो गया हैं इंशान ,|
मैंने फूल को भी मरोड़ते हुये देखा हैं,|

झुकता नहीं हैं इंशान अपनी गलती पर,|
इसलिए आज भी अपनों को खोते हुये देखा हैं,|
चाँद को चाँदनी देते हुये देखा हैं,|

आसमान को रोते हुये देखा हैं,|
धरती को सोते हुये देखा हैं ,||

सूरज को रोशनीं बिखैरतें हुये देखा हैं,|
इतना मत बदल ये इंशान ,|
कभी-कभी अपनों को भी रोते हुये देखा हैं,|

आसमान को रोते हुये देखा हैं,|
धरती को सोते हुये देखा हैं ,||

बिखर रहा हैं, प्यार अपार,|
इस स्वार्थ वस ये इंशान ,|

मैंने धरती को भी बज़र होते हुये देखा हैं,|
निकल न जाये कोई अनमोल अपने आप से,|
मैंने उनको भी अकेले में रोते हुये देखा हैं,|

आसमान को रोते हुये देखा हैं ,|
धरती को सोते हुये देखा हैं ,||

टूट जाते हैं विशाल पर्वत अपने स्थान से,|
उनको भी अपनी आवाज में रोते हुये देखा हैं,|
प्यार बिखर रहा हैं हमारा इस धरती से,|
इसलिए अपनों को आज भी रोते हुये देखा हैं,|

आसमान को रोते हुये देखा हैं,|
धरती को सोते हुये देखा हैं ,||

हम टूट जाते हैं अपनों की जिद के आँगे ,|
क्या किसी ने भी हमें रोते हुये देखा हैं,|
बिछड़ रहा हैं प्यार और कर्म हमारा,|

हमनें अपने आप को रोते हुये देखा हैं,|

आसमान को रोते हुये देखा हैं,|
धरती को सोते हुये देखा हैं ,||

टूट गया हैं आज सब कुछ हमारा,|
हमनें आज भी रात सोते हुये देखा देखा,|
वक्त लाता हैं इंशान जिसमें अपनों को भी खोते हुये देखा हैं,|

आसमान को रोते हुये देखा हैं,|
धरती को भी सोते हुये देखा हैं,||

लेखक – Jayvind singh

Language: Hindi
2 Likes · 1 Comment · 328 Views
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