अपने हुए पराए लाखों जीवन का यही खेल है
अपने हुए पराए लाखों जीवन का यही खेल है
अपनों के ही खातिर प्यारो यही तो जीवन मेल है
सच जब आंखों की पुतली से यारों पार उरती है
अपने ही फिर अपनों को यारों धोखा देती है
सद्कवि प्रेमदास वसु सुरेखा
अपने हुए पराए लाखों जीवन का यही खेल है
अपनों के ही खातिर प्यारो यही तो जीवन मेल है
सच जब आंखों की पुतली से यारों पार उरती है
अपने ही फिर अपनों को यारों धोखा देती है
सद्कवि प्रेमदास वसु सुरेखा