अपने वही तराने
गीत
मन करता है मैं भी गाऊं, अपने वही तराने।
जिन पर मेरा बचपन झूमा,पर-पर परी बहाने।।
धीरे-धीरे, हौले-हौले
अपनी सजी सवारी
नजर बचावे टीका मां का
पुच-पुच कर पुचकारी
घोड़ा बनते और पिताजी
टिक टिक अपनी चाल
आसमान की सैर कराते
सपनों में भूपाल
शीशे में फिर मस्तक चूमा, नजर लगी कतराने
मन करता है मैं भी गाऊं, अपने वही तराने
क्या होता है सुख दुख यारा
हमने कब ही देखा
चढ़ती गई बेल फिर अपनी
व्यय आयु की रेखा
द्वार-द्वार पर खड़ी थी तृप्ति
अपने पंख पसारे
घर-घर घूम रही अभिलाषा
कैसे कर्ज उतारे
लकड़ी की काठी का घोड़ा,रहता मुंह बचकाने
मन करता है मैं भी गाऊं, अपने वही तराने
अब तो मेरे गीतों पर जग
बलखाता इतराता
पर वो गीत कहां से लाऊं
जो है मुझे रुलाता
अदला-बदली कर पुस्तक की
ऊंची भरी उड़ानें
फिर भी आँखें ढूंढ रही हैं
बचपन की मुस्कानें
दर्पण-दर्पण देख दीप को,जलते हैं परवाने।
मन करता है मैं भी गाऊं, अपने वही तराने।।
सूर्यकांत