” ————————————-अपने माथे चंदन ” !!
बिगड़ी बनती सरकारें हैं , कैसे हैं गठबंधन !
आज अछूत हुए वे अपने , करते थे अभिनन्दन !!
वोट साथ में मांगे थे , अब राहें बदल गई हैं !
उनके माथे काला टीका , अपने माथे चंदन !!
प्रेसवार्ता होती घर पर , सबको सुनना भर है !
यहां नाम पर अब भी देखो , होता महिमामंडन !!
डूब गए आकंठ यहां पर , भष्टाचार न छूटा !
वोटों के दम हैं पर मिलते ,यों बहुतेरे नमन !!
अपनी छवि को आज निहारें , दागी ना कहलाएं !
बीस माह से झूल रहा था , यहां महागठबंधन !!
एक दूजे पर दोषारोपण , कौन आइना देखे !
नैतिकता ने दम तोड़ा है , झूंठे हैं आलिंगन !!
कौन है सच्चा कौन है झूंठा , जनता विवश खड़ी है !
कुर्सी पर बैठी है सत्ता , लुटता केवल जन मन !!
रोज़ यहां बिछती है चौसर , राजनीति की चौखट !
अनहोनी होनी बन जाये , जन देखे परिवर्तन !!
मोहपाश सत्ता का ऐसा , तजना बड़ा कठिन है !
कांटों के संग फूल यहां पर , महके नंदन वन है !!
बृज व्यास