अपने मन के बादल
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कल देखा एक बादल का टुकड़ा ,,अपनी मस्ती में ………..
बिना मांग के बरस रहा था ,,,दूर अभिजात्य बस्ती में ,,,,,
पर इधर झुग्गी झोपडी बाले ,,परेशान थे पानी के लिए …
प्यासा मन था ,, प्यासा तन था ,,निहार रहे थे ,, ताक रहे थे ..
युगों युगों से ,,,क्या प्यासे पानी को ……………….
ऐसे ही तरसते रहेंगे ,,,,,,
क्या पता क्या होगा ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,कुछ कहा नहीं जा सकता ,,,,,,,,,