अपने मन की बात
चार चरण में है लिखी, अपने मन की बात!
इसी भाँति जाहिर करूँ,मै अपने जज्बात!!
बातें जो अच्छी लगी,रखा उन्हीं का ख्याल ।
दोहों के आकार में, दिया उन्हें फिर ढाल ।।
दोहे का प्रारूप यह, कहा किसी ने छन्द।
लेने वाले ले रहे,….जिसे बाँच आनन्द ।।
कह पाऊँ वो ही नही, …कहनी है जो बात ।
फिर तो करना व्यर्थ है,जग जाहिर जज्बात।।
रमेश शर्मा.