अपने दिल के करीब हो कोई
ग़ज़ल
अपने दिल के करीब हो कोई।
एक ऐसा हबीब* हो कोई।।*प्रिय
जख़्म देकर लगाये ख़ुद मरहम।
काश! ऐसा रकीब* हो कोई।।*प्रतिद्वंद्वी
जो चमन पर लुटाये ज़ाँ अपनी।
ऐसी इक अंदलीब* हो कोई।।*बुलबुल
दूरियां जिससे मापते दिल की।
ऐसी भी तो ज़रीब* हो कोई।।*नापने का साधन
वह् म का जो इलाज करता हो।
एक ऐसा तबीब* हो कोई।।*चिकित्सक
सीख इंसानियत की देता हो।
अब तो ऐसा ख़तीब* हो कोई।।*धर्मोपदेशक
मर के जिंदा “अनीस ” नाम रहे।
मैं चढ़ूँगा सलीब* हो कोई।।*सूली
– अनीस शाह “अनीस”