“ अपने जन्म दिनों पर मौन प्रतिक्रिया ?..फिर अरण्यरोदन क्यों ?”
( संस्मरण )
डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ”
=====================================
कुछ बातें पढ़ता ,देखता और सुनता हूँ तो एक अद्भुत तरंग धमनियों में प्रवाहित होने लगती है ! कभी -कभी तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं ! हृदय की धड़कन बड़ जाती हैं ! लेखनी की पहली पंक्ति ही कहने लगती है कि लेखक किन विषयों को छू रहा है ! साहित्यिक ,संस्कृतिक ,मनोरंजन और ज्ञानवर्धक विवेचना के प्रभाव अमिट होते हैं ! कहानियाँ ,लेख ,विवेचना और संस्मरण को पढ़ना एक आनंदित क्षण माना जाता है ! जहाँ तक राजनीति विचारधारा का संबंध है यदि वो सटीक ,तर्कसंगत ,संतुलित ,मर्यादित और मृदुलता से अलंकृत लेख या विचार हो तो नहीं चाहने पर भी एक क्षण जी करता है कि पढ़ूँ ! यह तो मानना ही पड़ेगा कि राजनीति स्वयं ही विवादित है और इसकी विवाद की परिसीमा सभी दिशाओं में फैल जाती है जब इसमें कर्कश ,आलोचना ,अपशब्द बोलों और तिरस्कार की चासनी की परतें चढ़ जातीं हैं !
बहुत कम लोग इस तरह के होते हैं जो किन्हीं अन्य लोगों की कृतियों का रसास्वादन करते हैं ! सब अपनों में व्यस्त रहते हैं ! आप लाख कोशिश करके किन्हीं को कुछ पत्र स्वरूप लिखें ,जवाब शायद ही आयेगा आपको ! मैं कुछ दिनों से लोगों को उनके जन्म दिन पर उनके टाइम लाइन ,मैसेंजर और व्हाट्सप्प पर बधाई संदेश लिखकर पत्र लिखता हूँ ! पर उनकी आभार स्वरूप प्रतिक्रिया आज तक नगण्य रहीं !
कल की ही बात है ,गूगल ने कहा “ आपके दस फेसबूक मित्रों का आज जन्म दिन है ! आप उनके टाइम लाइन पर या मैसेंजर पर कुछ लिखें !”
मैंने अपने मित्रों के टाइम लाइन पर सबको लिख भेजा ,
“ I EXTEND MY BEST WISHES ON THE AUSPICIOUS OCCASION OF YOUR BIRTHDAY. MAY GOD BLESS YOU AND YOUR ENTIRE FAMILY FOR PROSPERITY, PROMOTION, AND SOUND HEALTH.
A FEW LINES ARE DEDICATED FROM MY COMPOSITION=====
“सूर्य की लालिमा से जीवन सदा देदीप्तमान रहे ,
खुशियाँ और आनंद के फूल सदा खिलते रहें !
शिकन लेशमात्र ललाट में आपके न आने पाये ,
आप यूँही इस धरा में आवाध गति से मुस्कुराएं !! “@लक्ष्मण
WITH BLESSINGS /LOVE
YOURS SINCERELY
DRLAKSHMAN JHA PARIMAL
SOUND HEALTH CLINIC
DOCTOR’S LANE
DUMKA
एक व्यक्ति ने भी आभार व्यक्त नहीं किया ना कोई दो शब्द ही मुझे लिखा ! यह बात भी नहीं थी कि वे सारे के सारे ऑफ लाइन थे ! सारे के सारे अपनी प्रक्रिया में लगे थे ! सामाजिक मर्यादा तो यह होती है कि हम अपने जन्म दिनों पर अपने बुजुर्गों को प्रणाम करते हैं और उनका आशीर्वाद लेते हैं !
जब अधिकाशतः लोग ना पढ़ते हैं ना देखते हैं और ना सुनते हैं तो फिर अरण्यरोदन क्यों ?…… फिर अरण्यरोदन क्यों ?
============================
डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ”
साउंड हेल्थ क्लिनिक
डॉक्टर’स लेन
दुमका
झारखंड
भारत
04.03.2023