अपने चेहरे पर मास्क लगाओ
अपनी ज़िंदगी पे ऐ मानव, अरे कुछ तो तरस खाओ,
अनमोल है तुम्हारा जीवन, इसे मुफ़्त में ना गंवाओ।
ना करो नज़र अंदाज़ इक पल, तुम सतर्क रहो हमेशा,
गर चाहते हो जीना तो, अपने चेहरे पर मास्क लगाओ।
क्या कहना ऐसे जालिमों का, जो खोखले दंभ भरते हैं,
कुदरत का ये कहर है, क्यों लोग सियासत करते हैं।
अपनी सुरक्षा अपने हाथ, सामाजिक दूरियाँ बनाओ,
गर चाहते हो जीना तो, अपने चेहरे पर मास्क लगाओ।
मानव रक्षा काम नहीं, परोपकार समझ नहीं आता है,
इन कलुषित नेताओं का केवल, स्वार्थ से गहरा नाता है।
त्राहि-त्राहि मची हुई है, दिहाड़ी भाई सब भूखे मर रहे,
बेशर्मों को शर्म नहीं आती, लाशों पर राजनीति कर रहे।
सच्चे राजनेताओं को चैन कहाँ, पलभर नहीं आराम है,
झूठे सियासतदानों का, बस पैर खींचना उनका काम है।
इनके करीब ना जाओ, अपने हाँथों पर प्रक्षालक लगाओ,
गर चाहते हो जीना तो, अपने चेहरे पर मास्क लगाओ।
कुदरती वैश्विक महामारी है, एक दिन समाप्त हो जाएगी,
ये जनता सब जानती है, तुम्हें एक दिन सबक सिखाएगी।
अरे ओ कफ़न के सौदागरों, ईश्वरीय कहर से खौफ़ खाओ,
गर चाहते हो जीना तो, अपने चेहरे पर मास्क लगाओ।
काटकर तमाम पेड़ पौधों को, तुम अट्टालिकाएँ बनाते हो,
प्रकृति को असंतुलन करने की, हर पल जुगत लगाते हो।
प्राणवायु के मोल को समझो, पेड़ों को कटने से बचाओ,
गर चाहते हो जीना तो, अपने चेहरे पर मास्क लगाओ।
?? मधुकर ??
(स्वरचित रचना, सर्वाधिकार©® सुरक्षित)
अनिल प्रसाद सिन्हा ‘मधुकर’