“अपने घर के सबसे बडे़ लडके हैं हम ll
“अपने घर के सबसे बडे़ लडके हैं हम ll
जिम्मेदारियों की परतों से ढके हैं हम ll
सारे मौसम सिर से होकर गुजरते हैं,
धूप, ठंड और बरसात में पके हैं हम ll
पल भर भी वक्त नहीं आराम के लिए,
कभी घूमते, कभी घिसटते चके हैं हम ll
हम भी इंसान हैं, हमें भी दर्द होता है,
ऊपर आसमान से थोड़ी टपके हैं हम ll
वक्त के थपेड़ों ने कुछ लायक बना दिया,
मिट्टी में मिल जाएंगे, मिट्टी के मटके हैं हम ll”