अपने को मत सताइए
अपने को मत सताइए।
विपत्ति को संपत्ति मत बनाइए।
अपने को कर्म गति दिजिए,
मुक्त जिंदगी बनाइए।
संयम को आत्मसमर्पण मत बनाइए I
सम्हल कर चलिए,चार
दिन की जिन्दगी यूँ मत गँवाइए
मौत तो निश्चित ही हैं।
फिर दुःख लाएगी।
जो रिश्तेदार उसे सतायेगी ही।
इसलिए जिंदगी को जिंदगी बनाइए।
अपने को कर्म दिजिए,
मुक्त जिंदगी बन ई ए ।
विपत्ति को संपत्ति मत बनाइए।_ डॉ. सीमा कुमारी, बिहार
(भागलपुर )दिनांक- 24-1-022 स्वरचित रचना जिसे आज प्रकाशित कर रही हूं।