अपने आँसू
मोती जैसे अपने आँसू,पहुमी पर मत गिरने देना।
शुभ्ररजत मय अश्रुकणों को, रज पर नहीं बिखरने देना।।
नयन पुलिन से छलक-छलक कर,
कपोल-किसलय पर आता।
पद्म-ह्रदय को म्लान बनाता,
ज्वलित वेदना दर्शाता ।।
अंतर्मन के सौम्य भाव को दिल से नहीं उतरने देना।।
रज पर नहीं बिखरने देना।
तिमिर बीच चंचल चपला सी,
अबाध गति आगे बढ़ना।
गहन गुहा से निकल धीर सम,
सदा बुलन्दी पर चढ़ना।।
राकानिशि के चन्द्र किरण सम पुलकित रूप निखरने देना।।
रज पर नहीं बिखरने देना।।
चढ़ उमंग स्यंदन के ऊपर,
दिग्दिगंत नभ नाप सको।
अंतरिक्ष का कोना कोना,
प्रज्ञा-बल से भाँप सको।
व्यष्टि सुखों से समष्टि सुख तक, निर्मल स्नेह सँवरने देना।
रज पर नहीं बिखरने देना।।
लतिका सी पुष्पित होकर तुम,
मृदु मलयज सा बन जाना।
चैतन्य हृदय प्रमुदित मन से,
निर्बल का सम्बल बन जाना।।
मानवता के हित मृग-मन को, सदा कुलाँचे भरने देना।
रज पर नहीं बिखरने देना।।
डॉ० छोटेलाल सिंह