अपने अस्त होने से पहले
अपने अस्त होने से पहले
किसी दिन उतर आऊंगी
तुम्हारी पीठ के आंगन में
टांग दूंगी अपने भिंगे मन को
तुम्हारी बांहों के अलगनी पर
ताकि सूख सके तुम्हारे आंच से
जैसे सूखता है महुआ आंगन में
जैसे सूखता है अनाज दलान में
जैसे सूखता है पसीना
मजदूर के अंगोछे में
ताकि ढलान पर भार न बने
मेरा बरसों का भिंगा मन
भिंगा हुआ कोई भी वस्तु हो
या हो फिर हो केवल भिंगा मन
बहुत भारी हो जाता है
और भार लेकर
जीवन नदी पार नहीं कर सकते
~ सिद्धार्थ