अपने अपने कृष्ण
जब भी हम संकट में होते हैं तो हम माँ और भगवान को याद करते हैं।यदि उस घड़ी कोई सहायतार्थी मिल जाये तो वह सारथी कृष्ण जैसा लगता है।
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“अपने अपने कृष्ण ”
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सबके हैं अपने अपने कृष्ण
हाँकते सब रथ
अपना जीवन
बन अर्जुन
घिरे रहते
असमंजस में
हो जाते किंकर्तव्यमूढ़
जीवन का युद्ध है कितना गूढ़
हैं सामने भीष्म भी और द्रोण
हर किसी का बने सारथी
दूर करे अकर्मण्य
फिर रचे नई गीता
फूंके पाञ्चजन्य
दे कोई गांडीव
ले जाये रथ
धर्म अधर्म के बीच
बने कृष्ण मेरा भी सरथी
कह विजयी भव
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राजेश”ललित”शर्मा