अपने “अंदर के रावण” को जला आओ
जैसा कि आप सभी लोग जानते हैं, कि आज भी कई गांव शहरों में रावण का दहन बड़े धूमधाम से किया जाता है। अरे भाई रावण के साथ जो होना था। वह तो हो गया, अब हर साल उसका पुतला जलाकर क्या साबित करना चाहते हैं। वह तो बहुत महान विद्वान था, नारी का मान सम्मान करना जानता था। और आज आप उस का पुतला जलाने वाले होते कौन हैं, क्या आपमें में राम जैसे संस्कार है पुरुषार्थ है या वचनो निभाने की शकती है। यदि आपने सारे गुण हैं एक बार मान सकते हैं कि आप रावण जलाने योग्य हो। लेकिन रावण का पुतला जलाने से क्या फायदा अब तो हर घर में रावण बैठा है। लालच रूपी रावण, तो ईर्ष्या रूपी रावण, अहंकार रूपी रावण, कामवासना मोह माया से भरा रावण, किस-किस रावण से सामना नहीं होता हमारा इस आधुनिक युग में, पहले राम तो बनो तभी तो तुम रावण को हरा पाएंगे। पहले अपने अंदर के रावण को जलाओ तभी तो आप बुराई को हराने वाले अच्छाई जीतने वाले असत्य पर सत्य की विजय पाने वाले राम की श्रेणी में आ पाऐंगे। अभी तो आप यूं ही रावण दहन की परंपरा को निभाते आ रहे हैं। उसके पीछे के तथ्य विचारधारा और ज्ञान को आप समझ नहीं पाए। जब अपने अंदर की बुराइयों पर आपने जीत हासिल कर ली तो समझ लो विजयदशमी मनाली। और यही सही मायने में उत्सव स्वरूप है। जय राम जी की।