अपनेपन की रोशनी
अपनेपन की रोशनी
सांत्वना और सहानुभूति के शब्दों की हथेलियाँ
खाली ही मिलीं हमेशा की तरह
उनके चेहरे पर अपनेपन का आवरण था
उनके दुख जताते शब्दों में,छुपा था एक मीठा सा सुख भी।।
अक्सर वे कंधे ही सबसे कमजोर मिले
जिन्होंने कंधा बनने की खूब प्रैक्टिस की थी
और जिन्हें अब तक नहीं मिला था मौका,अपनी प्रतिभा दिखाने का।।
‘सब ठीक हो जायेगा’ की अर्थहीनता,किर्रर्रर्रर्र की आवाज़ की तरह,कानों को चुभ रही थी।।
‘मैं हूँ न, परेशान न हो’ कहकर जो गए,वो कभी लौटे नहीं फिर।।
इन सबके बीच,कुछ निशब्द हथेलियाँ,हाथों को थामे चुपचाप बैठी रहीं।।
अंधेरा घना था लेकिन,अपनेपन की रोशनी भी कम नहीं थी ।।