अपनी क़िस्मत बुलन्द करते हैं
अपनी क़िस्मत बुलन्द करते हैं
हम तुम्हें ही पसन्द करते हैं
दीख जाते हैं ख़्वाब कितने ही
हम पलक जब भी बन्द करते हैं
कोई मतलब नहीं है दुनिया से
बात तुमसे ही चंद करते हैं
जो न मुश्किल में हौसला हारे
सब उसी को पसन्द करते हैं
साफ़गोई की खू नहीं जाती
सब ज़ुबाँ मेरी बन्द करते हैं