औरत होना अभिशाप क्यों
अपनी स्वतंत्रता,
अपना अधिकार
क्यों जग से मांगना पाप है?
पुरुष होना वरदान यहाँ क्यों
और औरत होना अभिशाप हैं?
जग निर्माण एवं सृष्टि में
मैं भी भागीदार हूँ,
राज-समाज में आसन का
हरेक क्षेत्र में शासन का
प्रबल दावेदार हूँ!
इन सपनों को विस्तार चाहिए
मुझे मेरा अधिकार चाहिए,
बहुत हुआ यह दोषारोपण
नहीं सहूँगी अपना शोषण
अब नियमों का होगा संशोधन,
क्योंकि-
मुझे भी आगे बढ़ना है
अपने दम पर जीवन में,
फहराना है शौर्य पताका
ऊँचे नील गगन में!!