अपनी सांसों पर भी है एतबार कहाँ
ऐतबार
अपनी सांसों पर भी है एतबार कहाँ
क्षण में हैं टूटती जीवन की लडियाँ
है ऐसा देखा संसार यहाँ
है सांसों पर भी एतबार कहाँ!
गुथे हार कुछ अनमोल थे सपने
चंचल तारें सजे थे आंचल में
रुसवाईयाँ भी कितनी झेली थी मैंने
तेरे वादों पर थी एतबार किया!
थी सांसों से मनकों को गुंथी
गगन में तारों के छिपने से पहले
पिरो अश्रु माला में प्रणय को
सिसकियां भी छुप छुप लिए थी!
पलकों में थे सजे जो सपने
दबी हृदय में वह आह बनी
जो कोई अगर तुझे बताता
तुझपे एतबार था जो प्यार का!
मुकस्वर उर सिसक रहे थे
खड़ी दरीचे भर सिसकियां
विरान पड़ी अंधेरे गलियों में
तड़प भरा तेरे एतबार लिए!
आश टूटे विश्वास भी टूटे
टूट गया हम दोनों का प्यार
अब तो समय चक्र भी है पलटा
सांसों पर जीवन में है नहीं एतबार!
दीपाली कालरा