अपनी व्यथा
सुनो मै इक बात बतलाता
एक दिन की मैं व्यथा सुनाता
जो हुयी थी घटना उस दिन
एक एक करके मैं सब बतलाता !!
भोर सबेरा का पहर था
घड़ी में साढ़े पांच बचा था
खाली रोड पे मैं खड़े होकर
भक्तिमय में डूब रहा था !!
तभी वहां दो लड़के आते
बाइक पल्सर थे वो चलाते
एक जगह का पता पूछते
मैं फिर उनको पता बताते !!
कहते वो मेरा इक फोन लगा दो
परेशान हूँ मेरी बात करा दो
फोन लगा के मैं उनको पकड़ाता
झट से वो फरार हो जाते !!
मैं अचानक घबड़ा जाता हूँ
बाइक का पीछा करता हूँ
नेम प्लेट भी देख ना पाते
आँखों से वो ओझल हो जाते !!
अब आयी F. I. R . की बारी
कर ली पूरी मैंने तैयारी
जब थाने में हम लोग गए थे
सब अपने में मस्त पड़े थे !!
दरोगा जी धुत्कार के भगाया
कहा की क्यों तुमने फोन लगाया
कोई नहीं हम सबकी सुनता
सब अपना पल्ला झाड़ता !!
FIR लिख नहीं रही थे
एप्लिकेशन पर मान रहे थे
अपने जिद पर डेट रहे थे
सबको बुद्धू जान रहे थे !!
तभी वहां मेरा दोस्त आया
१०० नंबर पर फोन लगाया
अधिकारी ने सब बाते पूछी
दोस्त ने पूरा काण्ड बताया !
फिर सर ने दरोगा को फोन लगाया
कई फोन दिल्ली से आया
जब बीजेपी नेता का फोन भी आया
दरोगा जी को चक्कर आया !!
बड़ी मसक्कत से बात बनी थी
तब मेरी रिपोर्ट लिखी थी
२ घंटे के बाद मुझे बुलाया
मुझे रिपोर्ट की नक़ल पकड़ाया !!
फिर मैं दोनों सिम ऐक्टिवेट करवाया
शाम को अपने घर पर आया
तब जाकर मई प्यूरी तरह से
मेरा दाल भी हरसाया !!
अंकुर दीवाना