अपनी भूल स्वीकार करें वो
कल तक बता रहे थे वो,
अपनी परेशानियां मुझको,
जब तैयार था मैं भी,
लेने को उनसे कर्ज उधार,
वो मुझको समझाते थे,
कि इस पर इतना खर्चा है।
और अब वो निकालकर देते हैं,
उत्सुकता से मुझको उधार रुपये,
बिना मांगे बैंक से निकालकर,
बिना सोचे अपने खर्चे के बारे में,
आँख बन्दकर मुझ पर विश्वास करके।
क्योंकि आज मुझको मिला है,
मेरी नौकरी का पहला वेतन,
और अब वो नहीं करते हैं,
मुझ पर कोई शक किसी प्रकार का,
और उनके उधार को चुकाने का संदेह।
मगर मेरी भी तो है मजबूरियाँ,
मुझको भी तो बनाना है अपना घर,
शायद नहीं दे सकूँ मैं भी उनको,
उनके माँगने पर रुपये उधार,
जबकि मालूम है उनको भी,
मैं भी तो शौकीन हूँ ,
उनके जैसी जीवन शैली का,
अपनी भूल स्वीकार करें वो।।
शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)