अपनी तरफ़
अपनी तरफ़ भी देखो,
ईमानदारी औरों को सिखला रहे,
पर ख़ुद बेईमान होते जा रहे हो तुम,
नीति, न्याय और धर्म की बातें फ़िज़ूल,
स्वार्थ अपना साधाए जा रहे हो तुम,
उपदेश अलग और आचार अलग ही किए जा रहे हो तुम,
आदर्श कुछ भी हो पर कर रहे हो अलग व्यवहार तुम,
समस्याएँ गिनवाते जा रहे हो,
अनदेखे करते जा रहे हो उपचार तुम,
सदाचार, संस्कार बीमार से दिख रहे,
उद्देश्य है कुछ और आधार कुछ,
दिख नही रहा तुम्हें कुछ भी,
इतने क्यूँ हो लाचार तुम,
हर इंसान द्वन्द्व में जी रहा,
कर्तव्य छोड़ कर रहे व्यापार तुम,
नियम क़ायदे ताक पर रख कर,
ख़ुद को कर रहे बर्बाद तुम,
औरों के दोष हज़ार और ख़ुद क्या पाक-साफ़ हो तुम,
देखो अपनी तरफ़ और ख़ुद को ही जवाब दो,
क्या ख़ुद से कर रहे इंसाफ़ तुम,
क्या है ज़मीर ज़िंदा अभी भी या
महज़ दिखावे के ईमानदार हो तुम…