” अपनी ढपली अपना राग “
सुखा फूल मुरझा कर पड़ा जो सड़क पर
किसी को लगे गंध तो किसी को पराग
आज सब हैं अपनी मर्जी के मालिक
सबकी अपनी ढपली अपना अपना राग,
सफेद बोर्ड पर छोटा काला बिंदु लगाकर
मीनू ने एक बार भीड़ को था आजमाया
जो दिखे बोर्ड पर वो तुम सब बयां करो
सबके हाथों में कलम कागज थमाया,
बयां करने का जब समय हुआ खत्म
सबने व्याख्या लिखकर पर्चा थमाया
भीड़ का परिणाम देखकर चकरा गया माथा
अधिकतर ने मात्र काले बिंदु के बारे में बताया,
समझ नहीं आया तब क्या बोले मीनू उन सबको
या कलयुगी नकारात्मकता का दिया जाए नाम
एक प्रतिशत जगह घेरे था काला बिंदु मात्र
बोर्ड की 99 प्रतिशत सफेदी क्यूं हुई गुमनाम,
विपरीत चीजों की तरफ खिंच रहे हम आज
सकारात्मकता शामिल नहीं हमारी दिनचर्या में
ना चाहते हुए भी भेड़ चाल को नित दोहराएं
सिर दर्द बना काम काज मशीनों की आड़ में।