अपनी जिंदगी अपने तरीके
पिछले दो सालों से दोनों बेटों के विदेश में सेटल होने के कारण 65 वर्षीय आनन्द एकाकी जीवन बिता रहे थे, क्योंकि पत्नी भी पंद्रह साल पहले ही स्वर्गवासी हो गयी थी।
पिछले महीने एक पार्क में उसकी मुलाकात 62 वर्षीया उर्मिला से हुई थी। तलाकशुदा उर्मिला को उसका एकलौता बेटा वृद्धाश्रम में यह कहकर छोड़ गया था कि हम दोनों पति-पत्नी अपने-अपने जॉब में बिजी रहते हैं, तो घर में अकेले रहने से अच्छा है आप यहाँ हमउम्र लोगों के साथ रहेंगी तो आपको अच्छा लगेगा। जिस बेटे के लिए उसने दूसरी शादी नहीं की, उसने बुढ़ापे में उसे घर से दूर कर दिया था। उसकी जिंदगी वीरान हो गई।
पर जिंदगी के इस मोड़ पर उर्मिला और आनन्द की मुलाकात ने कुछ खुशनुमा बदलाव लाया था। पहली मुलाकात में ही दोनों एक-दूसरे से काफी प्रभावित हुए थे। फिर ये मुलाकातें बढ़ती गईं। दोनों को एक साथी मिल गया था जिसके साथ वे सुकून के दो पल बिता सके, जी भर बातें कर सके। ये सिलसिला चलता रहा और ये बेनाम रिश्ता गहराता चला गया।
एक दिन आनन्द ने प्यार जताते हुए कहा, “उर्मिला, मुझे अब हर पल तुम्हारी जरूरत महसूस होती है। क्या तुम हमेशा के लिए मेरे साथ मेरे घर पर नहीं रह सकती?”
“ओह ! ये आप क्या कह रहे हैं ? हम रोज-रोज मिल रहे हैं, क्योंकि हम एक-दूसरे को जानते हैं, समझते हैं। पर लोग तो नहीं समझेंगे न? अनाप-शनाप बातें बनाएंगे सभी। ” उर्मिला ने अपनी चिंता जताई।
“तो हम शादी कर लेते हैं।” आनन्द ने दृढ़ता से कहा।
“इस उम्र में शादी ? क्या ये सही रहेगा ? हमारे बच्चे क्या सोचेंगे ?” उर्मिला घबराकर बोली।
“देखो उर्मिला, हम जिस उम्र से गुजर रहे हैं उस उम्र में एक साथी, एक सहारे की जरूरत सबसे ज्यादा होती है।
शादी सिर्फ शारीरिक संबंध नहीं है। यह एक भावनात्मक रिश्ता भी है, जो जीवन भर साथ देता है। अन्य सभी रिश्ते तो मौकापरस्त होते हैं, कभी भी पल्ले झाड़ लेंगे।
और हमारे बच्चों ने क्या किया ? कितनी परवाह है हमारी ? हमें अपने हाल पर छोड़, वो अपनी जिंदगी अपने तरीके से जी रहे हैं। हम जिएं या मरें , कुछ फर्क नहीं पड़ता उन्हें। तो हम भी क्यों न अपनी रही-सही जिंदगी अपने तरीके से जिएं, अपनी खुशी के लिए।”
आनन्द ने बच्चों पर रोष प्रकट करते हुए उर्मिला को समझाया।
“बात तो आपकी बिल्कुल सही है, लेकिन…।” उर्मिला सहमति जताने में अब भी हिचकिचा रही थी।
“लेकिन-वेकिन छोड़ो। अगले तीन दिन हम नहीं मिलेंगे। तुम आराम से एक-दो दिन सोच-समझ लो फिर कोई डिसीजन लेना। चलो अब चलते हैं।” आनन्द ने उर्मिला के हाथों को अपने हाथों में लेकर कहा।
“हम्म… अब चलना चाहिए।” कहकर उर्मिला आश्रम की ओर बढ़ी और आनन्द अपने घर की ओर।
दो दिन बाद उर्मिला का फ़ोन आया।
“हेलो !”
“हेलो ! आनन्द जी, मैं बोल रही हूँ उर्मिला।”
“हाँ, हाँ उर्मिला बोलो।”
“मैं सहमत हूँ आपसे ।”
“क्या? क्या कहा, फिर से कहना।” हँसते हुए आनन्द बोले।
“नहीं कहती मैं अब फिर से। आश्रम में मेरे साथियों ने आपको यहाँ बुलाया है। कल शाम में पार्टी रखी गई है हमारे लिए।”
खुशियाँ फूट रही थी उर्मिला की आवाज में।
“तुमने मेरे जीवन में बहारें ला दी ये खुशखबरी सुनाकर उर्मिला।” भावुक होकर आनन्द ने कहा।
“और आपने मेरे एकाकी जीवन में।” उर्मिला के भाव भी आनन्द से एकाकार हो गए।
“अच्छा, सुनो। मैं आज सारी चीज़ें सेटल कर कल आ रहा हूँ आश्रम, फिर वहीं से सीधे कोर्ट चले जाएंगे शादी के लिए।”
“ठीक है जी, जैसी आपकी मर्जी। मैं इंतजार में हूँ। बाय।”
“बाय। अपना ख्याल रखना।”
अगले दिन आनन्द आश्रम पहुंचे और आश्रम के कुछ लोगों के साथ उर्मिला को लेकर कोर्ट की ओर निकल पड़े अपनी जिंदगी अपने तरीके से जीने के लिए।
स्वरचित एवं मौलिक
-रानी सिंह