!!!!अपनी-अपनी सबको लगी!!!
अपनी-अपनी सबको लगी ।
कोई करता दिल्लगी कोई करे यहां ठगी।
दुनिया नहीं किसी की सगी ।
सुख में सब की भीड़ लगी।
दुख देख जनता भगी ।
महत्वकांक्षाओं की आग कभी न बुझी ।।
नई आई ऐसी कैसी सदी।
जिस पर पश्चिमी सभ्यता लदी।
छोड़ी शर्म – गुम हुए संस्कार।
कम वस्त्रों में देह फंदी।
मर्यादा तार-तार – युग नया अवतार।
वृद्ध माता-पिता लगते भार।
ना उनका आभार, करते निराधार।
ऐसा हो, वैसा हो ,पास में केवल पैसा हो।
बना रहा यही व्यवहार ।
घर से निकले नाजुक नार, कितने सहती अत्याचार।
कितना बढ़ गया व्यभिचार ,बहने हुई लाचार ।
हमारी लेखनी का समझो सार।
किसी को ना समझो भार ,जोड़ों हृदय के तार ।
क्यों करते आपस में तकरार।
समझो तो ठीक ,नहीं तो फिर कहेंगे,
अपनी-अपनी सबको लगी !!!!!!!!!!
**पढ़ें अच्छी लगे तो सुझाव दें**कमी लगे तो क्षमा करें**
राजेश व्यास अनुनय