” अपनी अपनी पोथी , अपना अपना भाष ” !!
कम, पढ़े -लिखे गुणी हैं ज्यादा ,
पढ़े -लिखों ने सब कुछ नापा /
संतों की महिमा है न्यारी ,
अलख जगाया , दुनिया वारी /
जहाँ भूख कम होगी –
ज्यादा है उपवास //
अब, बहू-बेटे में प्यार पले है ,
वृद्धाश्रम खूब, फले फूले हैं /
बेटे नहीं , बेटियां प्यारी ,
महके आँगन , घर , फुलवारी /
है नई चेतना जागी –
परिणामों की आस //
यहाँ ,राजनीति के दांव नये हैं ,
कभी जीते कभी छले गए हैं /
शकुनि के पांसे चलते हैं ,
सत्ताधारी हमें छलते हैं /
अंधियारे जब जब सिमटे –
फैल गया प्रकाश //
सपनों, का खेल लगे न्यारा है ,
हाथ हमारे इकतारा है /
खोना – पाना अब खेल यहाँ ,
किस्मत ले जाये जाने कहाँ /
पतझड़ जब बीत चले –
तब आयेंगे मधुमास //