अपनी-अपनी जुगत लगाने, बना रहे घुसपैठ।
किसी को राजा बनना,
किसी को मंत्री बनना,
किसी को बनना धन्ना सेठ,
अपनी-अपनी जुगत लगाने।
बना रहे घुसपैठ।
कोई कहे आसमा से
सितारे ले आऊंगा ,
कोई कहे चंदा को,
गोद में तुम्हारी सुलाऊंगा,
ख़ुद की बखत बनाने,
झूठे वादे कर रहे ठेठ।
अपनी-अपनी जुगत लगाने….
कुछ भी करने की खातिर,
आज तो सब कुछ बन जाऊंगा,
नौकर ,माली,सेवक बन कर,
सबके पैर भी दबाऊंगा,
वादों से अपने कभी न जाऊंगा मेट।
अपनी-अपनी जुगत लगाने….
झुक जाऊंगा सजदों में,
गिर जाऊंगा कदमों में,
ग़म को कर दूंगा दूर,
खुशियों की फसल लहलहाउंगा,
नंगे पैर भी चलूँगा चाहे महीना हो जेठ।
अपनी-अपनी जुगत लगाने….
इतनी खातिर दारी करने,
आखिर क्यों आ जाते हैं,
पाँच बरस लग जाते हैं,
तब ही ये शक़्ल दिखाते हैं
कुछ भी हो कैसे भी हो
बेखौफ करते हैं भेंट।
अपनी-अपनी जुगत लगाने….
बन्द करो ये नाटक अपना,
जनता अब न भोली है,
सिखला देगी तुमको भी,
ये वो बंदूक की गोली है,
जनता के जज्बातों से
मत करना आखेट।
अपनी-अपनी जुगत लगाने,
बना रहे घुसपैठ।
कुमार दीपक “मणि”
07/11/2023