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3 Aug 2024 · 9 min read

अपना सपना

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अपना सपना

सहज ने बिंदु के बालों में फूल लगा दिया और मुस्करा कर कहा , “ बिलकुल दुष्यंत की शकंतुला जैसी लग रही हो। ”

बिंदु खिलखिला कर हंस दी , कुछ देर पहले तो मुझे जेनिफर एनिस्टन कह रह थे। ”

“ वह भी सही था , बिलकुल तरल हो तुम , अलग अलग रूपों में ढलती रहती हो। एक अणु की तरह , जो पूरे ब्रह्माण्ड में विचरता है , नए नए बंधनो में ढलता , बिखरता। ”

“ पता नहीं क्या सोचते रहते हो , ब्रह्माण्ड से नीचे तो कभी उतरते ही नहीं। ”

“ तुम उतरने कहाँ देती हो ! कभी सेमि बरीव में तुम्हें पूरा गणित सुनाई देता है , तो कभी ॐ में ब्रह्माण्ड का स्वर। ”

“ मजाक बना रहे हो मेरा ?”

सहज हसने लगा , “ नहीं कह रहा हूँ कि तेरे स्तर पर पहुंचने की कोशिश कर रहा हूँ। ”

बिंदु की ऑंखें भर आई , “ मुझे पता है तुम मुझे प्यार नहीं करते , कहाँ तुम , कहा मै। “

“ मैंने इतनी बेवकूफ लड़की नहीं देखी, जिसको बिलकुल पता न हो कि वो क्या है। ”

“ ठीक है मुझे नहीं पता , पर इतना जानती हूँ कि तुम चाहो तो किसी फिल्म हीरोइन से भी शादी कर सकते हो। ”

सहज जोर से हंस दिया , “ बिजनेसमैन का बेटा हूँ , अपना बेस्ट इंटरेस्ट जानता हूँ , कोई भी हेरोइन तुम्हारे सामने टिक नहीं सकती। ”

बिंदु मुस्करा दी ,” थोड़ी और तारीफ करो न। ”

सहज उसके और करीब खिसक आया , “ पता है मुझे तुममें सबसे अच्छा क्या लगता है ?”

“ क्या ?”

“ तुम्हारी ऑंखें , ऐसा लगता है पता नहीं इनमें कितनी सृष्टियों का निर्माण हो रहा है , कितने भाव , कितनी आशाएं , यहां हर पल जन्म ले रही हैं। ”

“ कवि हो पूरे। ”

“ वो तो हूं, गणित भी तो अपने क़िस्म की कविता है , उदातिकरण को जन्म देती , पर एक दिन पूरा महाकाव्य भी लिखूंगा। ”

“ हाँ , जिसे और कोई पढ़े न पढ़े मैं जरूर सुन लूंगी। ”

सहज मंद मंद मुस्कराता रहा , और इस गोधूलि की बेला मेँ बिंदु का मन आसमान, जमीन , ढलते सूरज से एकाकार होता रहा।

समय बीतता रहा और दोनों डॉक्टरेट करने के लिए अमेरिका प्रिंसटॉन यूनिवर्सिटी आ गए। घरवालों को बताए बिना उन्होंने लिविंग इन मेँ रहना शुरू कर दिया। शुरू शुरू मेँ सब ठीक था , पर धीरे धीरे उनके झगड़े बढ़ने लगे , बिंदु सुबह उठ कर अपनी माँ के साथ वीडियो कॉल पर रियाज़ करती थी , सहज को देर रात तक काम करना अच्छा लगता था , सुबह की नींद खराब होने से वो सारा दिन तनाव में रहता था। शनिवार को सहज को क्लब जाकर थोड़ा पीना , मित्रों के साथ बैठना , नाचना अच्छा लगता था , बिंदु को लगता यह सब समय की बर्बादी है, इसलिए वो घर बैठकर कोई डाक्यूमेंट्री फिल्म देखेगी , सबसे ज्यादा झगडे होते थे सहज के तौलिया सोफे पर छोड़ने पर , या चद्दर की तह ठीक न करने पर।

कुलमिलाकर जिंदगी मुहाल थी , पहले वाली तरल बिंदु अब सहज को भारी भरकम पहाड़ सी लग रही थी , जिसको कुछ भी समझाया नहीं जा सकता था , और बिंदु को सहज एक बिगड़ा नवाब लग रहा था , जिसे अपनी जिम्मेवारियों का अहसास नहीं था।

सहज देख रहा था कि कुछ दिनों से उनके झगड़े नहीं हो रहे थे , घर भी पहले जैसा साफ नहीं रहता था , वो जब भी बिंदु को देखता , उसे लगता वो रो के उठी है , उसका वज़न भी कम हो रहा था। उसने एक दो बार पूछने की कोशिश की तो बिंदु ने उसको जवाब देना जरूरी नहीं समझा। सहज को भी लगा , यदि उसे अकड़ है तो वो भी उसके पीछे नहीं जायगा। चुप्पी इतनी बढ़ गई थी कि दोनों अलग अलग कमरे में सोने लगे थे।

एक दिन वो कंप्यूटर पर काम कर रहा था तो पता चला की इंटरनेट कट गया है , क्योंकि बिंदु ने बिल नहीं दिया था। पहले तो उसे बहुत गुस्सा आया , लगा जाकर उसपर चिल्लाये, फिर थोड़ा शांत होने पर लगा , यहां कुछ तो गड़बड़ है , बिंदु इसतरह भूलने वालों में से नहीं है।

वह उठकर उसके कमरे में गया तो देखा , एक प्लेट में मुरमुरे और भुने चने बिस्तर पर रक्खे हैं , और वो औंधे मुहं सोई है।

उसने दरवाजा खटखटाया तो वो जाग गई।

“ यह क्या है ? “ सहज ने प्लेट दिखाते हुए कहा।
“ डिनर “
सहज का माथा ठनका , “ ये तुम्हें हुआ क्या है ?”

“ कुछ नहीं , डाइटिंग कर रहीं हूँ , देख नहीं रहे , कितनी मोटी हो गई हूँ। ”

“ इंटरनेट का बिल क्यों नहीं दिया ? “

“ भूल गई। ”

“ काम कैसा चल रहा है तुम्हारा ?”

“ कौन सा ?”

“ रिसर्च का और कौन सा ?”

“ मैं छोड़ रही हूँ , I आइ एम एट डेड एन्ड। ”

“ यानि “

“ इतनी कम्प्यूटेशन मुझसे नहीं होगी। आय ऍम कन्फ्यूज्ड। ”

सहज ने कुछ सोचा , फिर कहा , “ चल बाहर चलते हैं , मैंने भी अभी डिनर नहीं किया। ”

बिंदु किसी आज्ञाकारी बच्चे की तरह तैयार हो गई।

गली के मोड़ पर एक लैबनीज रेस्टोरेंट था , दोनों वहां जाकर बैठ गए। सहज ने देखा , बिंदु ने हुम्मुस खाया और रोटी छोड़ दी, सलाद खाया और चिप्स छोड़ दिए।

“ खाना ठीक से क्यों नहीं खा रही ?”
“ बस मुझे इतनी ही भूख है। ”

अगली सुबह सहज ने दोनों के लिए ब्रेड ऑमलेट बनाया , बिंदु ने कहा ,वह ब्रेड नहीं खायगी और अंडा भी उबला हुआ लेगी। सहज यूनिवर्सिटी जाने के लिए तैयार होने लगा तो देखा , बिंदु फिर से बिस्तर मेँ दुबक गई है ,

“ क्या बात है यूनिवर्सिटी नहीं जाना ?”
“ नहीं ?”
“ क्यों ? “
“ बस यूँ ही। ”
“ कब से नहीं गई हो ? “
“ याद नहीं। ”
सहज कुछ क्षण स्वयं को सहेजता रहा , फिर कहा , “ चलो तैयार हो जाओ। ”
“ नहीं। ”
“ ठीक है यूनिवर्सिटी नहीं जायेंगे , कहीं घूमने चलते हैं। ”
बिंदु ने उसे एकदम तीखी नजरों से देखा और कहा , “ मेँ नफरत करती हूँ तुमसे। ”
सहज उसके पास आकर बिस्तर पर बैठ गया , “ क्यों ?”
“ मेरा मजाक उड़ाते हो दोस्तों के सामने। ”
“ मैं क्यों उड़ाऊंगा ?”
“ बताया मुझे राजेश ने कि तुमने कहा मैं बहुत रिजिड हूँ। ”
सहज हंस दिया ,” अरे वो सब मजाक की बातें थी , तुम जानती हो मैं तुमसे प्यार करता हूँ। ”
“ मेरे जैसी बदसूरत लड़की से तुम क्यों प्यार करोगे , करते तो शादी करते, यूँ लिविंग इन मेँ नहीं रहते। ”
“ अब तुम यह तो कहो मत , तुम्हें एडवेंचर चाहिए था , तुम्हें लिविंग इन चाहिए था , और वो भी घरवालों को बताए बगैर। ”
“ और तुम मान गए ?”
“ बिलकुल। ”
“ जैसे मेरी हर बात मानते हो, गीला तौलया तो जगह पर रखते नहीं। ”
“ अच्छा बाबा अब रक्खा करूँगा , अब चल तैयार हो जा। ”

सहज ने देखा , बिंदु बड़ी देर से आईने के सामने खड़ी खुद को देखे जा रही है।
“ क्या देख रही हो ?”
“ देख रही हूँ मेरी नाक कितनी मोटी है न , रंग कितना काला। ”
सहज सुनकर बहुत दुखी हो गया , इतनी सुन्दर, तेजस्वी लड़की को यह भीतर से क्या खा रहा है। वह अपनेआप को दोष देने लगा , इस नई जगह पर आकर उसने बिंदु को अकेला कर दिया।

बड़ी मुश्किल से जब बिंदु घर से निकली तो जैसे खुद मेँ सकुचाई थी। सहज ने उसका हाथ थाम लिया , और पूरे रास्ते इत्मीनान से बतियाता रहा , बिंदु भी धीरे धीरे सहज होने लगी। चलते चलते वो समुद्र तट तक आ गए , जेट्टी पर एक नाव जाने के लिए तैयार थी , ये दोनों भी उसमें बैठ गए। सहज दुनियां जहाँ की बातें करता रहा , बिंदु हंसती रही , बस एकबार उसने एक लड़की की तरफ देखकर कहा , “ कितनी सुन्दर है न वो। ”

सहज ने देखा और फौरन नजर घुमा ली , “ आगे से मुझे मत बताना कौन सुन्दर है प्लीज , मेरे सामने परी खड़ी है और मैं उसको देखूं। ”
“ अरे देखो तो , कितनी आत्मविश्वास से पूर्ण लग रही है। ”
सहज ने उसकी बातों पर ध्यान नहीं दिया और उसका हाथ पकड़कर नाव के दूसरी और चल दिया।

उस रात सहज अपने कमरे मैं नहीं गया। बातों बातों मेँ रात कैसे सरकती गई पता ही नहीं चला। सुबह होने वाली थी , वो दोनों बालकनी मेँ आ गए , ताकि सूर्योदय देख सकें। पूरा आकाश लाल हो उठा था , ऐसे लग रहा था जैसे हाथ बड़ा कर आकाश छू सकते हैं।

बिंदु की आँखों से आंसू बह रहे थे ,सहज सोच में था , वह क्या करे , सौंदर्य से अभिभूत हो उसने पहले भी बिंदु को रोते देखा था , उसे इस पल के साथ अकेले छोड़ने के इरादे से वह भीतर जाने लगा , बिंदु ने उसका हाथ पकड़ कर रोक लिया।

“ मुझे कुछ कहना है। ”
सहज वहीँ कुर्सी पर बैठ गया। थोड़ी देर बाद रूक कर बिंदु ने धीरे से कहना आरम्भ किया,
“ इकलौता बच्चा होने की अपनी मुश्किल होती है। माँ बाप की ऑंखें आप पर गाड़ी होती हैं, उनकी इच्छाएं आपकी अपनी इच्छाएं हो जाती हैं ।” बिन्दु ने धीरे धीरे अपने शब्दों को नापते हुए कहा ।

“ तुम बैठो मैं हम दोनों के लिए चाय बना लता हूँ। ”

पहले तो बिंदु को यूँ टोके जाने पर बहुत गुस्सा आया , पर चाय की जरूरत उसे भी थी , इसलिए वह मुस्कराकर कुर्सी पर बैठ गई।

कुछ ही पलों मैं सहज एक ट्रे मैं टोस्ट और चाय सजा कर ले आया।

इस बार बिंदु ने टोस्ट ख़ुशी ख़ुशी खा लिए।

“ हाँ , तो क्या कह रही थीं तुम ? “
“ मैं कह रही थी , अकेले बच्चे की मुश्किलें। ”
“ तुम मेरी बहुत तारीफ करते हो , मुझे अच्छा तो लगता है , साथ ही डर भी कि एकदिन तुम्हें मेरी असलियत समझ आ जायगी , फिर तुम मुझे छोड़ दोगे। ”

सहज हसने लगा ,” उल्टा यह डर तो मुझे लगना चाहिए। ”

“ अच्छा जाओ , अगर इसतरह तुम मुझे टोकते रहे तो मुझे तुमसे बात नहीं करनी। ”

“ अच्छा ठीक है , अब नहीं। ” उसने मुहं पर ऊँगली रखते हुए कहा।

बिंदु मुस्करा दी।

“ तुम तो जानते हो पिताजी गणित पढ़ाते हैं , और माँ संगीत। बचपन से ही जैसे वह किसी भविष्य के लिए मुझे तैयार कर रहे हैं। उन्होंने कहा कभी कुछ नहीं, पर जैसे यह मैं उनके बिना बोले ही समझती आई हूँ। उनको लगता है भारतीय और पाश्चात्य संगीत और गणित पर कुछ ऐसा काम होना चाहिए , जिससे एक सार्वभौमिक दृष्टिकोण पनप सके ।”

इसीलिए तुम्हे न्यूयोर्क आकर संगीत सीखना था, और प्योर मैथ्स पढ़ना था। ”

” हाँ। ”

” और अब तुम्हें लगता है, तुम यह नहीं कर सकोगी ?”

” हाँ. ”

सहज जोर जोर से हसने लगा , ” अरे भाई , सपना उनका , वो देख लेंगे न। फिर यह तो जिंदगी भर का काम है, छ महीने मेँ तुमने हिम्मत हार दी। ”

“ नहीं वो बात नहीं , जब राजेश ने मुझे बताया तुम दोस्तों मेँ मेरा मजाक उड़ा रहे हो तो मुझे ऐसा लगा , मैं किसी लायक नहीं , अंदर से मैं अपने आपको बहुत कुरूप अनुभव करने लगी। ”

“ पहली बात मैंने कभी तुम्हारा मजाक नहीं उड़ाया, न कभी ऐसा सोच सकता हूँ , राजेश ने यह आग क्यों लगाई , ये वही जाने , मैंने कहा था कि बिंदु असूलों की पक्की है। बस इतना ही। ”

“ ठीक है , तुम बात भी तो नहीं कर रहे थे , मुझे लगा , अब अच्छे से जानने के बाद मैं तुम्हें पसंद नहीं ।”

“ मुझे नहीं पता था तुम इतना असुरक्षित अनुभव करती हो ।”

बिंदु बहुत देर तक चुप रह और सोचती रही, फिर कहा,

“ मुझे भी नहीं पता था । पर अब सोचती हूँ आज इस पल मुझे इसका आभास हो जाना भी तो कम बात नहीं है। यहाँ से , मैं धीरे धीरे अपने विचारों के बल पर जीना सीख जाऊँगी , तुम फ़िकर न करो । चलो यूनिवर्सिटी के लिये तैयार होते हैं ।

बिंदु का मन बार बार उसे बाहर जाने से रोक रहा था, परन्तु सहज का साथ उसे फिर से अपना सा लग रहा था, और वह जान रही थी, इन भावनाओं से लड़ना उसके लिए आसान नहीं होगा, परन्तु हर बार गिर कर यदि वह फिर उठ खड़ी होगी तो यह हीन भाव उसे छोड़ देगा , और वह जान जायेगी उसकी अपनी इच्छायें क्या हैं, उसका अपना सपना क्या है, जिसे वह भरपूर आत्मविश्वास से पूरा करेगी , और अपने होने का अर्थ पा लेगी ।
——शशि महाजन

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