अपना मन
शीर्षक -अपना मन
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अपना मन सच तो हां यही हैं। जीवन में आज स्वार्थ बहुत हैं। शायद आज एहसास और एतबार नहीं हैं। अफसोस शब्दों के अर्थ नहीं हैं। हम तो संग निःस्वार्थ राह चलें है। बस मानव में मानवता की सोच नहीं हैं। धन संपत्ति और शोहरत के अहम बसे हैं। हम तो जीवन के टूटे बस राह बदली हैं। जिनसे दर्द कहा न समझी पीर पराई हैं। अपना मन बस दुःख मन भावों में अकेले हैं। समझे देर से हम हंसने में साथ सभी हैं। दुःख में न संग साथ निभाने अपना मनहैं। *************** नीरज अग्रवाल चंदौसी उ.प्र