अपना मन…???
अपनों से मिलते धोखों से
धीरे- धीरे टूट रहा है
अब तक सच जिसको समझा था
वो सब तो बस झूठ रहा है
हासिल जो भी हुआ था अब तक
वो सब पीछे छूट रहा है
औरों को खुश करते-करते,
अपना मन अब रूठ रहा है।
अपनों से मिलते धोखों से
धीरे- धीरे टूट रहा है
अब तक सच जिसको समझा था
वो सब तो बस झूठ रहा है
हासिल जो भी हुआ था अब तक
वो सब पीछे छूट रहा है
औरों को खुश करते-करते,
अपना मन अब रूठ रहा है।